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“भारत में बढ़ रहा है 'मॉक मीट' का प्रचलन”

Dr. Girish SP
Dr. Girish SP Nov 10 2022 - 5 min read
“भारत में बढ़ रहा है 'मॉक मीट' का प्रचलन”
मांसाहार छोड़कर शाकाहार अपनाने वालों की संख्या में जैसे-जैसे इजाफा हो रहा है, वैसे-वैसे देश में 'मॉक मीट' का प्रचलन भी बढ़ता दिख रहा है। नए-नए शाकाहारी बने उपभोक्ताओं के लिए मांस खाने की आदत को छोड़ पाने में यह 'मॉक मीट' काफी हद तक मददगार होता है क्योंकि शाकाहार होते हुए भी यह आपको मांसाहार भोजन का स्वाद देता है।

'मॉक मीट' या कहें कि नकली मांस उन लोगों के लिए तैयार किए गए हैं, जो मीट का स्वाद तो चाहते हैं, लेकिन शाकाहारी अंदाज़ में। यानि उन्हें स्वाद मांसाहार वाला चाहिए, लेकिन उसे मांस नहीं होना चाहिए। यही वजह है कि ऐसे मांसाहार स्वाद वाले शाकाहारी उत्पादों में मौजूद पोषक तत्वों को काफी हद तक बाजार में उपलब्ध समान गुणों वाले मांस उत्पादों के अनुरूप तैयार किया जाता है।

यकीनन, मांसाहार के बजाय शाकाहारी भोजन विकल्प के कई लाभ हैं। अमूमन इनमें सैचुरेटेड फैट (संतृप्त वसा) की मात्रा कम होती है, जबकि फाइबर (रेशा) की मात्रा ज्यादा होती है। इसमें मौजूद विटामिन, प्रोटीन, फाइबर और सैचुरेटेड फैट की कम मात्रा, मांसाहारी भोजन की तुलना में कैंसर, हृदय रोग और मधुमेह जैसी बीमारियों के जोखिम को कम करती है। यही वजह है कि मांसाहार के बजाय 'मॉक मीट' खाने वालों के तुलनात्मक रूप से लंबे समय तक स्वस्थ रहने की उम्मीद की जाती है।

मॉक मीट यानि सुपरफूड

'मॉक मीट' में हाई फाइबर के साथ-साथ उच्च गुणवत्ता वाला शाकाहारी प्रोटीन भी मौजूद होता है। इसमें 233 प्रतिशत ज्यादा कैल्शियम और 53 प्रतिशत अधिक आयरन मौजूद होने के कारण इन्हें 'सुपरफूड्स' भी कहा जाता है। पोषण विशेषज्ञों का दावा है कि ये 'मॉक मीट' कोलेस्ट्रॉल (शरीर में कोशिका, विटामिन और अन्य हार्मोन बनाने के लिए जिम्मेदार मोम और वसा जैसा पदार्थ), एंटीबायोटिक्स और हार्मोन मुक्त हैं। वास्तविक पोर्क की तुलना में इसमें 62 प्रतिशत कम कैलोरी और 71 प्रतिशत कम सैचुरेटेड फैट होता है।

अध्ययन बताते हैं कि माइकोप्रोटीन्स (बीफ और चिकन में पाए जाने वाला पोषक तत्व) नॉर्मल ब्लड कोलेस्ट्रॉल के स्तर को बनाए रखने में मदद करते हैं। साथ ही, एलडीएल कोलेस्ट्रॉल (लो-डेनसिटी लिपोप्रोटीन यानि एलडीएल कोलेस्ट्रॉल को अक्सर 'बैड' कोलेस्ट्रॉल भी कहते हैं, जो शरीर के ज्यादातर कोलेस्ट्रॉल के लिए जिम्मेदार होता है। अगर शरीर में इसकी मात्रा ज्यादा हो जाए तो हृदय रोग और स्ट्रोक का खतरा बढ़ जाता है) के स्तर को कम कर सकते हैं। उनमें सैचुरेटेड फैट कम होता है। वे कोलेस्ट्रॉल और ट्रांस फैटी एसिड (अनसैचुरेटेड फैट का एक प्रकार, जो बहुत कम मात्रा में मीट और मिल्क फैट में मौजूद रहता है) मुक्त होते हैं।

सोयाबीन और टोफू उत्पाद

डॉ. गिरीश कहते हैं, "कई अध्ययनों ने साबित किया है कि सोया प्रोटीन सीधे एलडीएल- कोलेस्ट्रॉल स्तर और ब्लड प्रेशर (रक्तचाप) को कम करता है। सोया प्रोटीन का सबसे अनूठा पहलू इसकी हाई आइसोफ्लेवोन (सोयाबीन में आइसोफ्लेवोन कंटेंट (मुख्यतः डैडज़ीन, जेनेस्टीन और उनके सम्बद्ध) की कुछ मात्रा होती है)  सामग्री है, जो स्वास्थ्य को काफी हद तक लाभ पहुंचाता है।"

पौष्टिक रूप से, टोफू (सोयाबीन का पनीर) कोलेस्ट्रॉल फ्री होता है। इसमें सैचुरेटेड फैट कम और प्रोटीन अधिक (लगभग 50 प्रतिशत) मात्रा में होती है। इसमें लगभग 27 प्रतिशत आवश्यक फैटी एसिड्स होता है और कैल्शियम की एक अच्छी मात्रा मौजूद होती है। हाल के अध्ययनों में से एक ने, टोफू प्रसंस्करण के उप-उत्पादों के उपयोग पर अपना ध्यान केंद्रित किया, जिसमें पौष्टिक रूप से समृद्ध प्रोटीन और वसा को शामिल किया गया। अध्ययन में बताया गया कि ये खाने में स्वादिष्ट और मानव स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद हो सकते हैं।

मॉक मीट और इसके दुष्प्रभाव

हाल के अध्ययनों में से एक ने, टोफू प्रसंस्करण के उप-उत्पादों के स्वस्थ उपयोग पर अपना ध्यान केंद्रित किया, जिसमें पौष्टिक रूप से समृद्ध प्रोटीन और वसा को शामिल किया गया। अध्ययन में बताया गया कि ये खाने में स्वादिष्ट और स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद होते हैं।

डेयरी विकल्पों के विपरीत, मांस के विकल्प आमतौर पर उतनी मजबूत स्थिति में नहीं होते। यही वजह है कि ये शाकाहारी विकल्प मांसाहार से प्राप्त पोषक तत्वों की बराबरी नहीं कर सकते। दुर्भाग्यवश, इन विकल्पों में उच्च मात्रा में नमक सहित अक्सर स्वाद बढ़ाने वाले एजेंट या प्रिजर्वेटिव्स (जो लंबे समय तक उसे खाने लायक बनाए रखने में मददगार होता है) भी मिले होते हैं।

खाद्य सुरक्षा को लेकर चिंता 

डॉ. गिरीश कहते हैं कि वैश्विक स्तर पर लोग आज खाद्य सुरक्षा को लेकर काफी चिंतित हैं। ऐसे में बहुत आश्चर्य नहीं होगा कि मोबाइल की तरह बहुत जल्द ये 'मॉक मीट्स', जिनकी कीमत आम तौर पर अपने पारंपरिक समकक्षों की तुलना में अधिक होती है, हर वर्ग की पहुंच में आ जाएं।

वे आगे कहते हैं, "ग्लूटेन आधारित 'मॉक मीट' का स्वाद बेहतर हो सकता है, लेकिन अड़चन यह है कि उसका पोषण मूल्य जीरो होता है। वहीं, उसके लगातार सेवन से धीरे-धीरे शरीर में मौजूद ऊर्जा का संतुलन बिगड़ सकता है, मूड स्विंग (यानि जल्दी गुस्सा आ जाना, मूड खराब हो जाना) जैसी परेशानियां हो सकती हैं। साथ ही, शरीर में पाचन संबंधी विकार भी देखने को मिल सकते हैं।"

शोध से पता चला है कि सोया में एस्ट्रोजेन जैसे यौगिक होते हैं, जिन्हें जेनेस्टीन और डैडज़ीन कहा जाता है। माना जाता है कि ये आइसोफ्लेवोन्स महिलाओं के सेक्स हार्मोन्स में छेड़छाड़ करते हैं, जो महिलाओं में स्तन कैंसर का कारण बन सकते हैं। साथ ही, थायराइड हार्मोन मेटाबॉलिज़्म की शिथिलता के लिए भी जिम्मेदार हो सकते हैं।

ग्लूटेन मुक्त आहार का सेवन

कुछ अध्ययनों से निकले परिणामों की मानें तो लंबे समय तक ग्लूटेन मुक्त आहार का सेवन करने से शरीर में फाइबर समेत लोहा, जस्ता और पोटैशियम जैसे खनिजों का स्तर कम हो सकता है। इस बीच, अन्य पोषक तत्वों, जैसे- बी-कॉम्प्लेक्स विटामिन्स और जरूरी खनिजों की कमी के खतरे का बढ़ जाना, ग्लूटेन-मुक्त आहार के प्रभाव के कारण शरीर को होने वाला सबसे बड़ा झटका हो सकता है।

भारत में 'मॉक मीट' को लेकर मान्यता

अंत में, डॉ. गिरीश कहते हैं कि देर से ही सही, लेकिन भारत में भी अब शाकाहारी मांस की अवधारणा जोर पकड़ रही है। कई युवा उद्यमियों ने हाई प्रोफाइल नौकरियां छोड़ने के बाद 'मॉक मीट' के व्यवसाय में उतरकर अपने उत्पादों को ऑनलाइन बेचने का उपक्रम शुरू किया है। उनका दावा है कि मांस के ये विकल्प, बिना किसी धार्मिक आपत्ति के लंबे समय तक सहेजे जा सकते हैं। हालांकि, इनका स्वास्थ्य पर प्रतिकूल और पर्यावरण पर भयानक प्रभाव पड़ सकता है।

दूसरी ओर, इस बात से भी इनकार नहीं किया जा सकता कि भारत में कुछ लोग 'मॉक मीट' के रूप में पौधे पर आधारित मांस की इस संभावना से असहमत हैं। इन उपभोक्ताओं के मुताबिक, यह पश्चिम से आयात किया गया कंज्यूमर ट्रेंड है, जो सांस्कृतिक रूप से भारत में बिलकुल भी फिट नहीं कहा जा सकता है।

(लेखक मुख्य कंसल्टेंट - जनरल एंड एएमपी, जीआई सर्जरी, एस्टर आरवी हॉस्पिटल हैं।)

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