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मत्स्य पालन में तेजी से बढ़ रहे कारोबार के मौके

Toshi Shah
Toshi Shah Aug 08 2022 - 5 min read
मत्स्य पालन में तेजी से बढ़ रहे कारोबार के मौके
मछली पालन में भारत दुनियाभर में दूसरे स्थान पर है। पिछले कुछ वर्षों के दौरान सरकार इस क्षेत्र में लगातार कई कार्यक्रम चला रही है, ताकि इसके माध्यम से रोजगार को बढ़ावा दिया जा सके।

तमिलनाडु मुख्यमंत्री एम के स्टालिन ने मछली पालन और मछुआरा कल्याण विभाग के लिए 43.50 करोड़ की बुनियादी ढांचा परियोजनाओं का उद्घाटन किया, जिसमें मछली लैंडिंग केंद्र, बीज उगाने के लिए मछली टैंक, सजावटी मछली केंद्र और प्रशिक्षण केंद्र, मछली सुखाने का क्षेत्र, कार्यालय भवन और आइस बार उत्पादन इकाइयां शामिल हैं। एक आधिकारिक बयान में कहा गया है कि सरकार सतत मछली पकड़ने और जलीय कृषि को बढ़ावा दे रही है और मछली संपदा की सुरक्षा कर रही है। इसका उद्देश्य मछली उत्पादन में वृद्धि सुनिश्चित करना और मछली पकड़ने के चरण से उपभोग तक मछली के स्वस्थ संचालन को सुनिश्चित करना है। स्टालिन ने मछली पालन मंत्री अनीता राधाकृष्णन, तमिलनाडु मत्स्य विकास निगम के अध्यक्ष गौतमन, मुख्य सचिव वी इरियनबु और विभाग के वरिष्ठ अधिकारियों की उपस्थिति में सुविधाओं का उद्घाटन किया।

वही उत्तराखंड के सीएम ने राज्य में मत्स्य पालन क्षेत्र को विकसित करने के लिए उत्तराखंड में जल्द ही प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना (पीएमएमएसवाई) की तर्ज पर राज्य में मुख्यमंत्री मत्स्य संपदा योजना (एमएमएसवाई) शुरू करेगी। यह घोषणा मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने रविवार को यहां आईआरडीटी सभागार में मत्स्य विभाग द्वारा राष्ट्रीय मत्स्य किसान दिवस के अवसर पर एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए की। उन्होंने मत्स्य निदेशालय में स्थापित होने वाली मत्स्य प्रसंस्करण इकाई की आधारशिला भी रखी। सीएम ने कहा कि मत्स्य पालन को कृषि का दर्जा दिया जाएगा और मछली पालन के लिए बिजली दर कृषि दरों पर वसूल की जाएगी। उन्होंने मछली किसानों के लाभ के लिए गढ़वाल और कुमाऊं संभाग में मछली मंडियां स्थापित करने की भी घोषणा की

साथ ही हरियाणा के सीएम ने कहा कि “मत्स्य पालन में बहुत गुंजाइश है, इसलिए हमने हरियाणा में 12 री-सर्कुलेटरी एक्वाकल्चर सिस्टम और 20 बायोफ्लॉक इकाइयां स्थापित की हैं। राज्य में वर्ष 2021-22 में 2 लाख मीट्रिक टन से अधिक मछली का उत्पादन हुआ है। 2022-23 में इसे बढ़ाकर 220 लाख मीट्रिक टन करने का लक्ष्य है।
मछली पालन और जलीय कृषि भारत में खाद्य उत्पादन, पोषण सुरक्षा, रोजगार और आय का एक महत्वपूर्ण स्रोत है। मछली पालन क्षेत्र 20 मिलियन से अधिक मछुआरों और मछली किसानों के लिए आजीविका का प्रत्यक्ष स्रोत है। भारत की अर्थव्यवस्था में जोड़े गए सकल मूल्य में सालाना 1.75 लाख करोड़ रुपये का योगदान देता है, और एक प्रमुख निर्यात अर्जक है। मछली भारत से निर्यात की जाने वाली सबसे महत्वपूर्ण कृषि वस्तुओं में से एक है।

भारत में कृषि निर्यात में मत्स्य पालन व उत्पादन बेहद महत्वपूर्ण और प्रमुख क्षेत्र के रूप में उभर रहा है। वर्तमान में मात्रा के मामले में 10.5 लाख टन और मूल्य में 33,442 करोड़ रुपये का मत्स्य उत्पादन हो रहा है। भारत इस समय दुनियाभर के 75 देशों में 50 से अधिक विभिन्न प्रकार की मछली और शंख उत्पादों का निर्यात कर रहा है। यह देश के कुल निर्यात का लगभग 10 प्रतिशत और कृषि निर्यात का लगभग 20 प्रतिशत है। भारतीय मत्स्य पालन और जलीय कृषि खाद्य उत्पादन का एक महत्वपूर्ण क्षेत्र है, जो पोषण प्रदान करता है।
भारत में आंध्र प्रदेश, केरल, तमिलनाडु, ओडिशा और महाराष्ट्र के समुद्र तटीय क्षेत्रों में मत्स्य पालन की गतिविधियां पहले से काफी अधिक रही हैं। इस क्षेत्र के एक बड़े हिस्से की आबादी का भरण-पोषण मत्स्य पालन से ही होता रहा है। वहीं, केंद्र सरकार की विभिन्न योजनाओं और कई राज्य सरकारों की स्थानीय पहल के चलते पिछले कुछ वर्षों के दौरान मत्स्य पालन की गतिविधियां काफी तेजी से बढ़ी हैं। इनमें झारखंड, छत्तीसगढ़, हरियाणा, बिहार और कई अन्य राज्य शामिल हैं।

भारत में, दो प्रकार के जलीय उत्पादों पर मुख्य रूप से काम किया जा रहा है। इनमें ताजे पानी के जलीय उत्पाद और खारे पानी के जलीय उत्पाद हैं। मीठे पानी में कार्प, कतला, रोहू, झींगा, सीप और घरों में सजावट के तौर पर पाली जाने वाली मछलियां प्रमुख हैं।
मीठे पानी के मत्स्य उत्पादों में मात्रा के हिसाब से आंध्र प्रदेश प्रथम स्थान पर है। वहीं, यह ताजे पानी के मछली उत्पादन और मछली झींगे उत्पादन के समग्र मूल्य में दूसरे स्थान पर है। आंध्र प्रदेश देश के कुल समुद्री निर्यात में लगभग 40 प्रतिशत का योगदान देता है।
छत्तीसगढ़ में नदी, जलाशयों, तालाबों और तालाबों के रूप में जलीय उत्पाद के लिए लगभग 1.549 लाख हेक्टेयर पानी उपलब्ध है। राज्य में दो प्रमुख नदी प्रणालियाँ भी हैं - महानदी और गोदावरी और उनकी सहायक नदियां 3,573 किलोमीटर का नेटवर्क बनाती हैं।
पश्चिम बंगाल में सोनारपुर और फ्रेजरगंज में मछली पकड़ने के बंदरगाह समुद्र में जाने वाले मछुआरों को सुविधाएं प्रदान करते हैं। सभी जिलों में प्रशिक्षण केंद्र मछुआरों, युवाओं, महिलाओं, सेवा अधिकारियों और कॉलेज के छात्रों को प्रशिक्षण प्रदान करते हैं।

हरियाणा राज्य में मछली पकड़ने के मुख्य स्रोत इसकी नदियाँ, झीलें और बांध हैं। बताया गया है कि इन प्राकृतिक जल निकायों में मछलियों की 55 प्रजातियाँ उपलब्ध हैं। हरियाणा देश में प्रति इकाई क्षेत्र में औसत वार्षिक मछली उत्पादन में दूसरे  दूसरे स्थान पर है। राज्य में औसत वार्षिक मछली उत्पादन 4209 किलोग्राम है। हिमाचल प्रदेश में गोबिंद सागर और पोंग जलाशयों में जलीय उत्पाद का सबसे अधिक अभ्यास किया जाता है। मछली पकड़ने और मछली पकड़ने के साहसिक खेलों के लिए बहुत से लोग इस राज्य का दौरा करते हैं। यहां उपलब्ध मछलियों के प्रकारों में ब्राउन ट्राउट, रेनबो ट्राउट, गोल्डन महासीर और कार्प शामिल हैं।

हाल के वर्षों में एक्वाकल्चर उत्पादन में भारी वृद्धि हुई है और पेनाइड श्रिंप दुनिया भर में सबसे महत्वपूर्ण संस्कृति प्रजातियों में से एक है, खासकर एशिया में, उनके उच्च आर्थिक मूल्य और निर्यात के कारण। भारत की तटीय जल उत्पाद प्रणाली में विदेशी श्वन्नामेईश् श्रिम्प की शुरूआत ने देश के समुद्री उत्पाद निर्यात में गति को बनाए रखने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। पिछले कुछ वर्षों में भारतीय समुद्री उत्पाद निर्यात काफी अच्छा कर रहा है। निर्यात में वृद्धि में योगदान देने वाले प्रमुख कारक हमारे तटीय जलीय कृषि प्रणालियों में वन्नामेई झींगा किस्म की शुरूआत थी।  भारत मछली पालन में  दुनियाभर में दुसरी स्थान पर है।

प्रधान मंत्री मत्स्य संपदा योजना (पीएमएमएसवाई) का लक्ष्य 2018-19 में लगभग 9 प्रतिशत की औसत वार्षिक वृद्धि दर से मछली उत्पादन को 2024-25 तक बढ़ाकर 220 लाख मीट्रिक टन करना है, जो 2018-19 में 137.58 लाख मीट्रिक टन था। 20 मई, 2020 को प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल द्वारा अनुमोदित ष्पीएमएमएसवाई भारत में मत्स्य पालन क्षेत्र के सतत और जिम्मेदार विकास के माध्यम से नीली क्रांति योजनाष् लाया गया है। इस योजना में अनुमानित निवेश की  20,050 करोड़ रुपये का केंद्रीय हिस्सा शामिल है। 9,407 करोड़ रुपये, राज्य का हिस्सा 4,880 करोड़ रुपये और लाभार्थियों का योगदान होगा।


 

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