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भारत 2030 तक 500 गीगावॉट गैर-जीवाश्म ईंधन क्षमता स्थापित करने के लिए तैयार

Nitika Ahluwalia
Nitika Ahluwalia May 17 2022 - 4 min read
भारत 2030 तक 500 गीगावॉट गैर-जीवाश्म ईंधन क्षमता स्थापित करने के लिए तैयार
भारत सरकार अपने महत्वाकांक्षी परिनियोजन लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए सौर फोटोवोल्टिक (पीवी) क्षेत्र में घरेलू मैन्युफैक्चरिंग को बढ़ावा देने के लिए प्रतिबद्ध है।

केंद्रीय नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा राज्य मंत्री भगवंत खुबा ने वैश्विक निवेशकों को भारत के ऊर्जा उद्योग में निवेश करने के लिए आमंत्रित किया है। उन्होने कहा इस क्षेत्र में लगभग 196.98 बिलियन अमरीकी डालर की परियोजनाएं चल रही हैं।

खुबा ने जर्मनी के म्यूनिख में एक सम्मेलन में निवेशकों को संबोधित करते हुए कहा भारत निवेश के लिए एक बड़ा अवसर प्रदान करता है। वर्तमान में भारत में लगभग 196.98 बिलियन अमरीकी डालर मूल्य की परियोजनाएं चल रही हैं। मैं एक बार फिर सभी विकसित देशों और प्रमुख आरई (नवीकरणीय ऊर्जा) खिलाड़ियों को भारत द्वारा दुनिया को दिए जा रहे अवसर का उपयोग करने के लिए आमंत्रित करता हूं।

खुबा ने भारत के सौर ऊर्जा बाजार पर 'इंटरसोलर यूरोप 2022' में मुख्य भाषण देते हुए कहा कि सीओपी26 के दौरान निर्धारित प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के महत्वाकांक्षी पंचामृत लक्ष्यों के तहत, भारत 2070 तक शुद्ध शून्य हासिल करने और 2030 तक 500 गीगावॉट गैर-जीवाश्म ईंधन क्षमता स्थापित करने के लिए तैयार है।मंत्री ने आगे कहा कि भारत की विशाल अक्षय ऊर्जा संसाधन क्षमता और मजबूत नीति, इन लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए एक मजबूत आधार प्रदान करती हैं।

उन्होंने कहा कि भारत ने पिछले सात वर्षों में आरई क्षमता में अविश्वसनीय वृद्धि देखी है और 2030 के लक्ष्य से पूरे नौ साल पहले 2021 में गैर-जीवाश्म ईंधन से 40 प्रतिशत संचयी विद्युत क्षमता का लक्ष्य हासिल किया है।

भारत सरकार अपने महत्वाकांक्षी परिनियोजन लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए सौर फोटोवोल्टिक (पीवी) क्षेत्र में घरेलू मैन्युफैक्चरिंग को बढ़ावा देने के लिए प्रतिबद्ध है।घरेलू पीवी मैन्युफैक्चरिंग क्षेत्र को मदद देने के लिए कई नीतिगत उपाय किए गए हैं। मंत्री ने इस बात पर भी जोर दिया कि भारत उच्च दक्षता वाले सौर पीवी मॉड्यूल के घरेलू मैन्युफैक्चरिंग को बढ़ाने के लिए प्रतिबद्ध है, जिसके लिए कुल 24,000 करोड़ रुपये का बजट तैयार किया गया है।इसके अलावा, हरित हाइड्रोजन अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने के लिए, भारत ने 25,425 करोड़ रुपये का अनुमान लगाया है।ग्रीन हाइड्रोजन मिशन की नजर सालाना 4.1 मिलियन टन ग्रीन हाइड्रोजन पैदा करने की है।

पिछला साल 2021 में नॉलेज पार्क स्थित इंडिया एक्सपो सेंटर में भगवंत खुबा ने कहा की भारत 175 गीगा वाट की क्षमता हासिल करने के लिए दुनिया का सबसे बड़ा स्वच्छ ऊर्जा कार्यक्रम चला रहा है। इसके तहत 2022 तक 100 गीगा वाट सौर ऊर्जा और 2030 तक 450 गीगा वाट सौर ऊर्जा का लक्ष्य है। भारत बायोमास का विशाल उत्पादक भी है।

इंफोर्मा मार्केट्स इन इंडिया के प्रबंध निदेशक योगेश मुद्रास ने कहा कि भारतीय अक्षय और नवीनीकरण ऊर्जा क्षेत्र में दुनिया में चौथा बाजार है। सरकार के प्रोत्साहन से भारत में 2028 तक 500 बिलियन अमरीकी डॉलर का निवेश हो सकता है।

अक्षय ऊर्जा क्या है

अक्षय ऊर्जा स्रोत ऊर्जा स्रोत हैं जिनकी हमेशा भरपाई की जाती है। उन्हें कभी भी समाप्त नहीं किया जा सकता है। अक्षय ऊर्जा स्रोतों के कुछ उदाहरण बताते है जैसे की सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा, हायड्रो पॉवर, जियोथर्मल एनर्जी और बायोमास ऊर्जा हैं।

अक्षय ऊर्जा के इन विविध स्रोतों का अपार भंडार है और किसी भी राष्ट्र को विकसित बनाने के लिए इन प्रदूषणरहित स्रोतों का समुचित उपयोग किए जाने की आवश्यकता भी है। यही कारण है कि भारत सरकार ने वर्ष 2004 में अक्षय ऊर्जा के विकास को लेकर जागरूकता अभियान चलाने के उद्देश्य से अक्षय ऊर्जा दिवस की शुरुआत की थी। आज देश में ऊर्जा की मांग और आपूर्ति के बीच अंतर तेजी से बढ़ रहा है। अक्षय ऊर्जा स्रोतों के उपयोग को बढ़ावा देने से हमारी ऊर्जा की मांग एवं आपूर्ति के बीच का अंतर भी खत्म हो जाएगा और इससे प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से सामाजिक जीवन स्तर में भी सुधार होगा। उत्पादन की बात करे तो अक्षय ऊर्जा उत्पादन की देशभर में कई छोटी-छोटी इकाइयां हैं जिन्हें एक ग्रिड में लाना बेहद चुनौतीभरा काम है। इससे बिजली की गुणवत्ता प्रभावित होती है। भारत में अपार मात्रा में जैवीय पदार्थ, सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा, बायोगैस व लघु पनबिजली उत्पादक स्रोत हैं लेकिन इनसे ऊर्जा उत्पादन करने वाले उपकरणों का निर्माण देश में नहीं के बराबर होता है। अभी तक ऐसे अधिकांश उपकरण आयात किए जाते हैं। बीते हुए वर्षों में सौर ऊर्जा के लिए ही करीब 90 प्रतिशत उपकरण आयात किए गए। इससे बिजली उत्पादन की लागत काफी बढ़ जाती है, जिसका सीधा-सीधा असर देश की अर्थव्यवस्था पर भी पड़ता है। इसलिए बेहद जरूरी है कि देश के भीतर ही इन उपकरणों के मैन्युफैक्चरिंग के लिए अपेक्षित कदम उठाए जाएं।

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