970*90
768
468
mobile

श्रीलंका की अर्थव्यवस्था की वर्तमान स्थिति, इस आर्थिक संकट से क्या सबक सीख सकते है

Nitika Ahluwalia
Nitika Ahluwalia May 24 2022 - 8 min read
श्रीलंका की अर्थव्यवस्था की वर्तमान स्थिति, इस आर्थिक संकट से क्या सबक सीख सकते है
श्रीलंका की आबादी करीब 2.2 करोड़ है और महंगाई ने वहा की जनता का दम तोड़ रखा है। रोजमर्रा की चीजे जैसे दूध, चीनी, चावल और ब्रेड के दामों में भारी उछाल देखने को मिल रहा है और लोगों के लिए यह खरीदना भारी पढ़ रहा है।

भारत के दक्षिण में हिन्द महासागर में भारत से ही लगा हुआ एक द्वीप है जिसका नाम श्रीलंका है। वर्ष 1972 तक इसका नाम सीलोन था, जिसे बदलकर लंका और वर्ष 1978 में इसके आगे श्री शब्द जोड़कर श्रीलंका कर दिया गया। श्रीलंका की दूरी भारत से करीब 22 किलोमीटर है। श्रीलंका वैश्विक चाय बाजार में एक प्रमुख खिलाड़ी है और उसकी बदहाली भारत के चाय निर्यातकों के लिए अपने निर्यात बढ़ाने का अवसर प्रदान कर सकता है। श्रीलंका सालाना 300 मिलियन किलोग्राम चाय का उत्पादन करता है और 90 से 95 प्रतिशत चाय का निर्यात करता है।

रेटिंग एजेंसी आईसीआरए लिमिटेड के उपाध्यक्ष कौशिक दास ने कहा कि देश अपने वार्षिक उत्पादन का लगभग 97 से 98 प्रतिशत निर्यात करता है। ग्लोबल मार्केट में श्रीलंका की हिस्सेदारी करीब 50 प्रतिशत है। श्रीलंका चाय का निर्यात इराक, ईरान,संयुक्त अरब अमीरात, पश्चिमी देशों, रूस, तुर्की और लीबिया जैसे देशों मे होता है। श्रीलंका के आर्थिक संकट के कारण चाय के उत्पादन में भारी गिरावट आई है जिससे वैश्विक बाजारों मे ज्यादा असर पड़ा है। अब बात करते है की श्रीलंका 70 सालों में सबसे खराब स्थिती से क्यो गुजर रहा है।

आर्थिक संकट की शुरुआत कैसे हुई

श्रीलंकाई सरकार ने सार्वजनिक सेवाओं के लिए विदेशों से बड़ी रकम कर्ज़ के रूप में ली। बढ़ते कर्ज़ के अलावा कई दूसरी चीज़ों ने भी देश की अर्थव्यवस्था पर प्रभाव डाला जिनमें भारी बारिश जैसी प्राकृतिक आपदाओं से लेकर मानव निर्मित तबाही तक शामिल है। इसमें रासायनिक उर्वरकों पर सरकार का प्रतिबंध शामिल है, जिसने किसानों की फसल को बर्बाद कर दिया।

वर्ष 2020 में कोविड-19 महामारी ने देश को सकंट मे डाल दिया और अर्थव्यवस्था को संभालने के लिए राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे ने करों में कटौती की एक नाकाम कोशिश की। लेकिन ये कदम उल्टा पड़ गया और सरकार के राजस्व पर बुरा असर पड़ा, इसके चलते रेटिंग एजेंसियों ने श्रीलंका को लगभग डिफ़ॉल्ट स्तर पर डाउनग्रेड कर दिया, यानी कि देश ने विदेशी बाज़ारों तक पहुंच को खो दिया।

सरकारी कर्ज़ का भुगतान करने के लिए फिर श्रीलंका को अपने विदेशी मुद्रा भंडार का रुख करना पड़ा, जिसके चलते इस साल भंडार घटकर 2.2 बिलियन डॉलर हो गया, जो 2018 में 6.9 बिलियन डॉलर था। इससे ईंधन और अन्य ज़रूरी चीज़ों के आयात पर असर पड़ा और कीमतें बढ़ गईं।

सरकार ने मार्च में श्रीलंकाई रुपया फ्लोट किया यानी इसकी कीमत विदेशी मुद्रा बाज़ारों की मांग और आपूर्ति के आधार पर निर्धारित की जाने लगी। ये कदम मुद्रा का अवमूल्यन करने के मकसद से उठाया गया, ताकि अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष से कर्ज़ मिल जाए, लेकिन अमेरिकी डॉलर के मुक़ाबले रुपये की गिरावट ने आम श्रीलंकाई लोगों के लिए हालात और खराब कर दिये।

श्रीलंका में आम लोगों के लिए स्थिति बहुत ज्यादा खराब हो गई है। लोगों को सामान के लिए घंटों तक लाइन में लगना पड़ रहा है और वो भी उन्हे सीमित मात्रा में मिल रहा है। स्थानीय लोगों का कहना है कि ब्रेड के दाम दोगुने हो गए हैं, जबकि ऑटो रिक्शा और टैक्सी चालकों का कहना है कि सीमित मात्रा में मिल रहा ईंधन बहुत कम है। लोगों को अपने परिवार का पेट पालने के लिए काम भी करना है और सामान लेने के लिए लाइनों में भी लगना पड़ रहा है। लगातार हो रहे पावर कट ने कोलंबो को अंधेरे में धकेल दिया है। कई घंटों तक बिजली गुल हो रही है।

देश के सेंट्रल बैंक के गवर्नर ने कहा है कि देश के विदेशी मुद्रा भंडार को बढ़ाने के लिए कदम उठाए जाने की ज़रूरत है ताकि खाना, ईंधन और दवाओं जैसी रोज़ाना की ज़रूरतों के आयात को जारी रखा जा सके। उन्होंने विदेशों में रहने वाले श्रीलंका के लोगों से देश के विदेशी मुद्रा भंडार में दान देने की अपील की है। इस बीच श्रीलंका कर्ज़ चुकाने में मदद के लिए पड़ोसी देशों का रुख कर रहा है। इसके अलावा अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष से भी बातचीत जारी है। नुकसान में चल रही श्रीलंकन एयरलाइंस ने अपने 21 विमानों को लीज़ पर देने की योजना बनाई है। हालांकि कई नेताओं ने विमान लीज़ पर देने के श्रीलंकन एयरलाइन के फैसले की कड़ी आलोचना की है।

दूसरे देशों की बात करे तो अर्जेंटीना में दो बार ये हालत पिछले दो दशकों में 2000 से 2020 के बीच दो बार आ चुके है। अब वहां चीजें कंट्रोल में हैं। यूक्रेन पर हमला करके रूस खुद 1998 में दीवालिया हो चुका था। वहां खाने के सामानों के लिए लंबी लाइनें लगती थीं। सोवियत संघ कई देशों में टूट गया। वर्ष 2003 में उरुग्वे में ये हालत हुई। वर्ष 2005 में डोमिनिकन रिपब्लिक और 2001 में इक्वेडोर दीवालिया स्थिति में पहुंचा। 2012 में ग्रीस की भी हालत बहुत खराब थी। वो दीवालिया हो गया था लेकिन उसकी गाड़ी भी अब पटरी पर लौटने लगी है।

श्रीलंका की आबादी करीब 2.2 करोड़ है और महंगाई ने वहा की जनता का दम तोड़ रखा है। रोजमर्रा की चीजे जैसे दूध, चीनी, चावल और ब्रेड के दामों में भारी उछाल देखने को मिल रहा है और लोगों के लिए यह खरीदना भारी पढ़ रहा है। श्रीलंका दवा से लेकर ऑयल तक अपनी ज्यादातर चीजें आयात करता है। उसके कुल आयात में पेट्रोलियम उत्पाद की हिस्सेदारी पिछले वर्ष दिसंबर में 20 प्रतिशत थी और कुछ समय से श्रीलंका की सरकार जरूरी चीजों का आयात करने में नाकाम रही है। इसी वजह से जरूरी चीजों मे किल्लत हो गई और सप्लाई नही होने की वजह से दाम बढ़ गए है, जिसकी वजह से लोगों को भारी संकट का सामना करना पढ रहा है।

श्रीलंका की सरकार के पास जरूरी चीजों के आयात के लिए विदेशी मुद्रा नहीं है। कोरोना की महामारी का इस पर भयंकर असर पड़ा है। बता दे श्रीलंका की अर्थव्यवस्था में टूरिज्म का बड़ा हाथ है। इस देश को 3.6 अरब डॉलर की कमाई होती है। इस देश में लगभग 30 प्रतिशत टूरिस्ट रूस, यूक्रेन, पोलैंड और बेलारूस से आते है।

श्रीलंका अब अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष से वित्तीय सहायता मांग रहा है और मदद करने में सक्षम क्षेत्रीय शक्तियों का रुख कर रहा है। एक संबोधन में राष्ट्रपति राजपक्षे ने कहा था कि उन्होंने अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष से पैसा लेने के फायदे और नुक़सान के बारे में सोचा था और फिर संस्था से बेलआउट लेने का फैसला किया, जबकि उनकी सरकार ऐसा करने के पक्ष में नहीं थी। श्रीलंका ने चीन और भारत से भी मदद मांगी है। भारत पहले ही मार्च में 1 बिलियन डॉलर की क्रेडिट लाइन जारी कर चुका है, लेकिन कुछ विश्लेषकों ने चेतावनी दी कि ये सहायता संकट को हल करने के बजाए इसे खींच सकती है।

देश के केंद्रीय बैंक के अनुसार, नेशनल कंज्यूमर प्राइस इन्फ्लेशन सितंबर में 6.2 प्रतिशत से फरवरी में 17.5 प्रतिशित यानी लगभग तीन गुना हो गया है। श्रीलंका को लगभग 4 बिलियन डॉलर का कर्ज़ चुकाना है, जिसमें 1 बिलियन डॉलर का अंतरराष्ट्रीय सॉवरेन बॉन्ड भी शामिल है जो जुलाई में मैच्योर होता है।

श्रीलंका में कर्ज- जीडीपी का अनुपात अभी 100 से ज्यादा है और बीते कई वर्षों से इसमें लगातार बढ़ोतरी होती रही है। पहले भी कर्ज- जीडीपी अनुपात 100 से ऊपर जा चुका है, लेकिन उस समय अर्थव्यवस्था का हाल बेहतर था और इसलिए हालात अभी की तरह इतने खराब नहीं हुए। ज्यादातर विकसित देशों, जैसे जापान और अमेरिका पर भी बहुत ज्यादा कर्ज का बोझ है, लेकिन उनकी अर्थव्यवस्था भी उतनी ही मजबूत है इसलिए इनका खर्ज संकट ज्यादा होता है। श्रीलंका के साथ सबसे बड़ी समस्या यह है कि 60 प्रतिशत से भी ज्यादा के संसाधनों के लिए यह दूसरे देशों पर निर्भर है और इसकी भरपाई करने के लिए उसके पास पर्याप्त विदेशी मुद्रा भंडार नहीं है।

श्रीलंका की अर्थव्यवस्था रेमिटेंस (प्रवासी श्रीलंकाई से मिलने वाली आय) पर निर्भर है, यह जीडीपी का करीब 9 प्रतिशत है। यह आय लगभग पूरी तरह मध्य पूर्व से आता है, जो प्रवासी महिलाए घरेलू नौकरानियों के रूप में वहां काम करती हैं। इस आय में करीब 80 प्रतिशत योगदान इन महिलाओं का है, जबकी उनके पुरूष घर पर कुछ विशेष नहीं करते और इधर-उधर घूमते हैं। कुल मिलाकर, आर्थिक स्थिति काफी नाजुक और अस्थिर हैं। वर्ष 2019 में हुए ईस्टर बम विस्फोट और कोविड महामारी की वजह से यहां का पर्यटन पूरी तरह से तबाह हो चुका है, इसके कारण देश के पास पैसा नहीं बचा है। ऊपर से सरकार की जैविक खेती से संबंधित त्रुटिपूर्ण नीति, जाहिर तौर पर इसे फर्टीलाइजर आयात खर्च को बचाने और विदेशी बाजारों में बेहतर मूल्य प्राप्त करने के लिए तैयार की गई, उनके कारण इसके कृषि उत्पादन में कमी आई।

जब आप अस्थिरता के हालात में इस तरह कर्ज लेते है तो निश्चित तौर पर आपके दिवालिया होने का जोखिम होता है और फिर पुराने कर्ज के भुगतान के लिए आपको ज्यादा कर्ज लेना पड़ता है। यह कर्ज का दुष्चक्र है और श्रीलंका के साथ यही हुआ। जब राजपक्षे सत्ते में वापस आए, तो 2009 के बाद से महत्वाकांक्षी परियोजनाओं के लिए बेहिसाब उधारी ने स्थिति को और बदतर बना दिया। उन्होंने सोचा कि फ्रंट- लोडिंग इंफ्रास्ट्रक्चर देश की अर्थव्यवस्था को गति देगा, लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ क्योकि उन्होंने जो कुछ भी बनाया वह व्यवसायिक रूप से फायदेमंद साबित नही हुआ।

 

Subscribe Newsletter
Submit your email address to receive the latest updates on news & host of opportunities
Entrepreneur Magazine

For hassle free instant subscription, just give your number and email id and our customer care agent will get in touch with you

or Click here to Subscribe Online

Newsletter Signup

Share your email address to get latest update from the industry